Photo Credit By: Rohit Sharma
वैज्ञानिक संगोष्ठी में आहार, अध्यात्म और आसन के महत्व पर हुआ विस्तृत विमर्श
प्रयागराज। भारतीय स्वास्थ्य चिंतन में आहार, अध्यात्म और आसन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सात्विक आहार से निर्मित शरीर जब आध्यात्मिक अनुशासन से परिपुष्ट होकर योग एवं आसनों के अभ्यास से दृढ़ता को प्राप्त करता है, तभी सर्वांगीण स्वास्थ्य प्राप्त कर आनंदमय जीवन व्यतीत करता है। यही विचार आरोग्य भारती, विश्व आयुर्वेद मिशन एवं केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित ‘वैज्ञानिक संगोष्ठी’ में आरोग्य भारती के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ. अशोक कुमार वार्ष्णेय ने मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किए।
इस संगोष्ठी में आहार एवं आसन के माध्यम से स्वस्थ जीवनशैली अपनाने और स्वास्थ्य बनाए रखने पर गहन चर्चा की गई। डॉ. वार्ष्णेय ने अपने संबोधन में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य के महत्व को रेखांकित करते हुए बताया कि आरोग्य भारती का उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना है। उन्होंने कहा कि आज देश के कोने-कोने में आरोग्य भारती के कार्यकर्ता ‘स्वस्थ एवं समर्थ भारत’ के महान उद्देश्य की पूर्ति हेतु समर्पित हैं।

महाकुंभ: आस्था, विश्वास एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य का केंद्र
संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि डॉ. विवेक चतुर्वेदी ने महाकुंभ को भारतीय संस्कृति की वैश्विक पहचान बताते हुए कहा कि 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के विशाल जनसमूह को सुव्यवस्थित रूप से संचालित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसे प्रदेश के मुख्यमंत्री के निर्देशन में सफलतापूर्वक संपन्न किया जा रहा है। उन्होंने महाकुंभ के दौरान आध्यात्मिकता, योग, प्राणायाम एवं तप-साधना के जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किए।
भारतीय ज्ञान परंपरा में आहार, अध्यात्म और आसन की भूमिका
विश्व आयुर्वेद मिशन के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. जी. एस. तोमर ने संगोष्ठी में आहार को स्वास्थ्य और रोग दोनों के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में आहार, अध्यात्म और आसन के सम्यक अनुपालन से व्यक्ति अपने जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिमी चिकित्सा विज्ञान केवल शारीरिक कष्टों का समाधान कर सकता है, जबकि आयुर्वेद संपूर्ण स्वास्थ्य का संरक्षण और रोगों से मुक्ति प्रदान करता है।
आध्यात्मिकता के बिना अधूरा है स्वास्थ्य
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए निदेशक डॉ. ललित कुमार त्रिपाठी ने कहा कि आध्यात्मिकता भारतीय संस्कृति के हर पहलू में विद्यमान है। हमारी परंपरा हमें ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयः’ की भावना से ओत-प्रोत रखती है। उन्होंने समन्वित चिकित्सा पद्धति को अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
पारंपरिक आहार अपनाने का आह्वान
विशिष्ट अतिथि डॉ. शांति चौधरी (पूर्व शोध अधिकारी, मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, प्रयागराज) ने पोषक तत्वों से भरपूर पारंपरिक आहार श्रृंखला को अपनाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि ‘जैसा खाए अन्न, वैसा बने मन’—यह कहावत सिद्ध करती है कि खानपान की शुद्धता सुखी एवं स्वस्थ जीवन का मूल आधार है।
महाकुंभ सेवा में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मान
संगोष्ठी में महाकुंभ में सेवा के उत्कृष्ट संपादन हेतु अपर मेला अधिकारी एडीएम डॉ. विवेक चतुर्वेदी, डॉ. अवनीश पांडेय, डॉ. हेमंत सिंह, डॉ. कामता प्रसाद, डॉ. सुनील वर्मा, डॉ. माताशंकर दुबे एवं डॉ. आशीष मौर्य को अहर्निश चिकित्सा सेवा के लिए सम्मानित किया गया। साथ ही अंकुर सिंह, अरुण जायसवाल एवं आशीष शुक्ला को सेवा सहयोग हेतु प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। विश्व आयुर्वेद मिशन के शिविर की उत्कृष्ट व्यवस्था हेतु अनुराग अस्थाना को भी विशेष रूप से सम्मानित किया गया।
संगोष्ठी का सफल आयोजन
कार्यक्रम का संचालन श्री अंकित मिश्रा ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अवनीश पांडेय ने दिया। इस अवसर पर प्रो. मनोज कुमार मिश्र, प्रो. देवदत्त सरोदे, प्रो. रामकृष्ण पांडेय, डॉ. सुरेश पांडेय, डॉ. मनीष जुगरान, डॉ. अंजनी कुमार पुण्डरीक, श्री राजेश कान्त तिवारी एवं श्री संजय कुमार मिश्र समेत कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
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