दीपावली शिल्प मेले की छठी सांस्कृतिक संध्या
प्रयागराज के दीपावली शिल्प मेले की छठी सांस्कृतिक संध्या में सूफी संगीत, लोक नाटिका, और बिरहा गायन ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। एनसीजेडसीसी (उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र) द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में देशभर से आए शिल्पकारों और कलाकारों ने अपनी कला और संस्कृति का प्रदर्शन किया, जो दर्शकों के दिलों में लंबे समय तक यादगार रहेगा।

सूफी गीतों ने बांधा समां
दीपावली शिल्प मेले की छठी सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत संदीप और उनके साथी कलाकारों की सूफी प्रस्तुति से हुई। उन्होंने “दमादम मस्त कलंदर”, “छाप तिलक सब छीनी रे”, और “सानू एक पल चैन न आवे” जैसे लोकप्रिय सूफी गीत प्रस्तुत किए। इन गीतों ने कार्यक्रम में प्रेम और भक्ति का रंग घोल दिया और दर्शक मंत्रमुग्ध होकर तालियां बजाते रहे।
लोक नाटिका और बिरहा गायन का अनोखा संगम
कार्यक्रम की अगली प्रस्तुति कंचन लाल यादव द्वारा बिरहा गायन रही, जिसमें उन्होंने रामायण के प्रसंगों को लोकगीत के माध्यम से जीवंत किया। उन्होंने विशेष रूप से कैकई द्वारा श्रीराम से वरदान मांगने की कथा को पेश किया, जिसने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
इसके बाद, रवि कुशवाहा और उनकी टीम ने भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं पर आधारित एक नृत्य-नाटिका प्रस्तुत की। वृंदावन, मथुरा और द्वारका की झलक दिखाने वाली इस प्रस्तुति ने प्रेम और भक्ति के भाव से दर्शकों के हृदयों को छू लिया।
बच्चों की मनमोहक चैती प्रस्तुति
कार्यक्रम में केंद्र की गुरु-शिष्य परंपरा के तहत प्रशिक्षिका ममता शर्मा के निर्देशन में वाराणसी के बच्चों ने चैती गायन की मनोहारी प्रस्तुति दी। उन्होंने “गजानन कर दो बेड़ा पार”, “चैत मासे बोले रे कोयलिया” और “रामजी लीहले जनमवां” जैसे लोकगीतों से दर्शकों का मन मोह लिया। बच्चों की इस प्रस्तुति ने दर्शकों की खूब सराहना बटोरी और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कार्यक्रम आगे बढ़ा।
शिल्प मेले में विभिन्न राज्यों के उत्पादों की धूम
सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ-साथ शिल्प हाट में विभिन्न राज्यों से लाए गए शिल्प उत्पादों ने भी लोगों का ध्यान खींचा।
- राजस्थान की जूतियां और परिधान
- पश्चिम बंगाल के हैंडमेड जूट उत्पाद
- मध्य प्रदेश के लकड़ी के शिल्प
इन वस्तुओं ने खरीदारों का खूब आकर्षित किया, और लोग जमकर खरीदारी करते नजर आए।
प्रयागराज के दीपावली शिल्प मेले की खासियत
इस मेले का उद्देश्य देश की लोक कला, शिल्प, और सांस्कृतिक धरोहर को मंच देना है, जिससे शिल्पकारों को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने और बेचने का अवसर मिले। यह मेला न केवल लोक कलाकारों के लिए बल्कि प्रदर्शकों के लिए भी आर्थिक प्रगति का मंच है।
Conclusion:
प्रयागराज के दीपावली शिल्प मेले की छठी सांस्कृतिक संध्या ने सूफी गीतों, बिरहा गायन, और लोक नाटिका के अनोखे संगम से दर्शकों का मन मोह लिया। कार्यक्रम में बच्चों की चैती गायन प्रस्तुति और विभिन्न राज्यों के शिल्प उत्पादों ने इसे और भी यादगार बना दिया। इस प्रकार के आयोजनों से भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार होता है और शिल्पकारों को उनके हुनर का उचित सम्मान मिलता है।
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