नदी संवाद का संकल्प गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए प्रतिबद्धता
नदी संवाद का संकल्प: गंगा की अविरलता और निर्मलता हेतु सामूहिक प्रतिबद्धता
कुंभ: सनातन संस्कृति की विरासत
18 दिसंबर 2024 को, प्रयाग में आस्था और संस्कृति का दुनिया का सबसे बड़ा समागम आयोजित हो रहा है। इस महाकुंभ के दौरान ‘नदी संवाद’ कार्यक्रम में नदियों की वर्तमान स्थिति पर गहन चिंतन किया जाएगा। नदियों की अविरलता और निर्मलता सुनिश्चित करने का यह प्रयास न केवल मानवता बल्कि समस्त जीव-जंतुओं के लिए आवश्यक है। इस अभियान को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर का सहयोग प्राप्त हो रहा है।

नदियों का सांस्कृतिक महत्व
भारत में नदियों को माँ का दर्जा दिया गया है। गंगा नदी को विशेष रूप से पवित्र और मोक्षदायिनी माना गया है। गंगा न केवल भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की आधारशिला है, बल्कि इसके किनारे लाखों मठ, मंदिर, और वेद विद्यालय भारत की मेधा को समृद्ध करते हैं।
गंगा की चुनौतियाँ
गंगा नदी आज कई बाधाओं का सामना कर रही है। औद्योगिक अपशिष्ट, नालों का दूषित जल, और बाँधों के कारण गंगा की अविरल धारा बाधित हो रही है।
समस्याएँ और समाधान:
समस्या | समाधान |
---|---|
बाँधों द्वारा धारा का रुकावट | नए बाँधों का निर्माण रोकना |
औद्योगिक अपशिष्ट | सीवरेज और अपशिष्ट जल का उपचार |
अवैध खनन | उपग्रह निगरानी और CCTV का उपयोग |
प्रस्तावित सुधार
- नदियों को कानूनी पहचान:
- नदियों को ‘Legal Persona’ का दर्जा दिया जाए।
- न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह:
- हर मौसम में नदियों में न्यूनतम प्रवाह सुनिश्चित हो।
- संविधान में संशोधन:
- जल और नदियों को संविधान की समवर्ती सूची में शामिल किया जाए।
- नदी पोर्टल:
- नदियों से संबंधित सभी जानकारी के लिए एक समर्पित पोर्टल बने।
- स्थानीय जिम्मेदारी:
- नगर पालिका, विधायकों और सांसदों की जिम्मेदारी तय हो।
गंगा के संरक्षण में जन भागीदारी
महाकुंभ में 20 जनवरी को ‘नदी संवाद’ का आयोजन होगा। इस कार्यक्रम में गंगा और उसकी सहायक नदियों की अविरलता और निर्मलता के लिए सुझाव और रणनीतियों पर चर्चा होगी।
मुख्य संदेश
गंगा की अविरलता और निर्मलता को बनाए रखना हर नागरिक का दायित्व है। हम सभी एकादशी व्रत का संकल्प लें और गंगा के संरक्षण में अपनी भागीदारी निभाएँ।
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