महिषासुर मर्दिनी नृत्य नाटिका में सजी सांस्कृतिक संध्या: शिल्प मेले में बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश।

प्रयागराज:
दीपावली शिल्प मेले के पांचवें दिन, एनसीजेडसीसी (उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र) और संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित सांस्कृतिक संध्या में महिषासुर मर्दिनी नृत्य नाटिका एवं भजनों की भव्य प्रस्तुति हुई। भजन गायिका अर्चना दास और नृत्यांगना श्वेता श्रीवास्तव के दल ने पारंपरिक भक्ति और शास्त्रीय नृत्यों के माध्यम से दर्शकों का मन मोह लिया।
सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत भजन प्रस्तुति से:
- अर्चना दास ने भजनों की प्रस्तुति में “हे पार्वती के लाल हे शिव के अवतारी” और “सजा दो घर को गुलशन सा मेरे” जैसे भजनों से भक्तिमय माहौल बना दिया।
- लोकगीत “चला पिया हमई के मेला घुमाय दा” की प्रस्तुति ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया।
महिषासुर मर्दिनी नृत्य नाटिका: कला का संगम:
- श्वेता श्रीवास्तव और उनके दल ने शिव-सती कथा पर आधारित नृत्य नाटिका में प्रेम, भक्ति और रौद्र भावों का प्रदर्शन किया।
- नाटिका के विभिन्न चरणों में गंगा अवतरण, नौ दुर्गा रूप, महिषासुर वध, और सिंह सवार दुर्गा का जीवन्त चित्रण किया गया।
- शिव-पार्वती विवाह और महिषासुर का वध को गीत-संगीत और शास्त्रीय नृत्य के संयोजन के साथ प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
राहुल निषाद और दल द्वारा काली स्वांग नृत्य नाटिका:
- काली रूप की नृत्य प्रस्तुति के दौरान दर्शकों ने पंडाल से अपनी नजरें नहीं हटाईं। कलाकारों की उत्कृष्ट प्रदर्शन क्षमता ने माहौल को ऊर्जावान बना दिया।
संगीतकारों की शानदार संगत:
- कार्यक्रम में संगीत की धुनें बिखेरने के लिए विभिन्न वाद्य यंत्रों पर जयंत बोस (ऑल्टोपैड), अखिलेश चंद्र गौतम (तबला), जान्हवी मिश्रा (ढोलक) और अंशिता त्रिपाठी (हारमोनियम) ने संगत की।
- कीबोर्ड पर आर्या पाण्डेय और विशाल वैश्य, ढोलक पर हिमांशु मिश्रा तथा कोरस में रिद्धिमा दुबे ने अपने हुनर का प्रदर्शन किया।
कार्यक्रम का संचालन और दर्शकों की उपस्थिति:
- कार्यक्रम का संचालन अभिजीत मिश्रा ने किया।
- एनसीजेडसीसी के अधिकारियों, कर्मचारियों और बड़ी संख्या में दर्शकों की उपस्थिति ने इस सांस्कृतिक संध्या को विशेष बना दिया।
निष्कर्ष:
दीपावली शिल्प मेले की यह सांस्कृतिक संध्या कला, भक्ति और परंपरा का अद्भुत संगम साबित हुई। महिषासुर मर्दिनी नृत्य नाटिका के माध्यम से बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया गया, जो दर्शकों के दिलों में गूंजता रहा। भजन गायन और लोकगीतों ने माहौल को और भी जीवंत बना दिया।
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