सनातन की मातृभाषा संस्कृत के संरक्षण में गुरुकुलों की भूमिका – श्री महंत रविंद्र पुरी
सनातन की मातृभाषा संस्कृत को बचाने का संकल्प:
अचला सप्तमी पर बागंबरी गद्दी में विशेष कार्यक्रम आयोजित
प्रयागराज। महाकुंभ 2025 के तीसरे शाही स्नान के पश्चात अचला सप्तमी के पावन अवसर पर बागंबरी गद्दी, प्रयागराज में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस भव्य आयोजन की अध्यक्षता अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद एवं मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री महंत रविंद्र पुरी महाराज ने की। इस कार्यक्रम में देशभर के संत-महापुरुषों और अखाड़ों से जुड़े विद्वानों ने भाग लिया।

कार्यक्रम का शुभारंभ गुरुकुल के विद्यार्थियों द्वारा वेद मंत्रों के उच्चारण से हुआ, जिससे संपूर्ण वातावरण भक्तिमय हो उठा। इसके पश्चात बागंबरी गद्दी के परमाध्यक्ष स्वामी बालवीर गिरी महाराज ने समस्त संत-महापुरुषों का माला एवं पुष्प से स्वागत किया।
गुरुकुलों के आचार्यों का सम्मान
कार्यक्रम में अखाड़ों द्वारा संचालित गुरुकुलों के आचार्यों और सनातन धर्म की सेवा में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर महंत रविंद्र पुरी महाराज ने कहा कि सनातन धर्म की मातृभाषा संस्कृत विलुप्ति के कगार पर है और गुरुकुलों के माध्यम से इसे पुनर्जीवित करने का कार्य किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, “गुरुकुल हमारी संस्कृति और परंपरा को आगे बढ़ाने का सशक्त माध्यम हैं। जो आचार्य संस्कृत भाषा को जीवित रखने और इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं, उनका सम्मान वैश्विक स्तर पर होना चाहिए। इससे हमारी संस्कृति और परंपराएं आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रहेंगी।”
सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार का संकल्प
इस पावन अवसर पर अखाड़ा परिषद के महामंडलेश्वर स्वामी प्रेमानंद पुरी (अर्जी वाले हनुमान जी, उज्जैन), महंत शंकारानंद सरस्वती, महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरी, महामंडलेश्वर स्वामी अनंतानंद, महंत ओमकार गिरी, महंत दिनेश गिरी, महंत राधे गिरी, महंत नरेश गिरी, महंत राकेश गिरी और स्वामी राज गिरी सहित अनेक संत महापुरुष उपस्थित रहे।
समारोह में उपस्थित सभी संतों ने महाकुंभ में तीसरे शाही स्नान के सफल आयोजन पर एक-दूसरे को बधाई दी और सनातन धर्म की उन्नति के लिए आचार्यों और गुरुकुलों के योगदान की सराहना की। इस अवसर पर अखाड़ा परिषद अध्यक्ष ने कहा कि सनातन धर्म को जीवंत बनाए रखने के लिए गुरुकुलों को अधिक सशक्त किया जाएगा और इनके प्रचार-प्रसार के लिए विशेष योजनाएं बनाई जाएंगी।
निष्कर्ष
यह आयोजन सनातन धर्म की संस्कृति और संस्कृत भाषा के उत्थान का महत्वपूर्ण प्रयास है। अखाड़ा परिषद द्वारा किए गए इस सम्मान से गुरुकुलों की महत्ता और आचार्यों के योगदान को विशेष पहचान मिली। इस कार्यक्रम ने यह संदेश दिया कि संस्कृत भाषा और सनातन परंपराओं को बचाने में गुरुकुलों का योगदान अमूल्य है।
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